রোগকৃত্যা গ্রহাদিনাং শিরসি শান্তিরীরিতঃ।
বশ্য জনানাং সৰ্ব্বেষাং বিধেয়ত্ব মুদীরিতং৷৷
প্রবৃত্তিবোধঃ সৰ্ব্বেষাং স্তম্ভনং সমুদাহৃতম্।
স্নিগ্ধানাং দ্বেষণ মিধো বিদ্বেষণং মতম্ ৷৷
উচ্চাটনং স্বদেশাদেভ্রংশনং পরিকীর্তিতম্।
প্রাণিনাং প্রাণহরণং মারণং সমুদাহৃতম্ ৷৷
স্বদেবতা-দিক্কালদীন্ জ্ঞাত্বা কৰ্ম্মাণি সাধয়েৎ।
স্নিগ্ধানাং পরস্পরমিত্রভাবাপন্নণম্ ৷৷
যে কর্মের দ্বারা সকল ব্যাধিনাশ ও গ্রহদোষাদির উপশম হয় তাহাই
শান্তিকর্ম। যে কর্মের দ্বারা জীবগণ বশ্যতা স্বীকার করে তাহাকে বশীকরণ
বলে। যে কর্ম সম্পাদনে জীবগণের প্রবৃত্তিরোধ হয় তাহাই স্তম্ভন। যে কর্ম
দ্বারা প্রণয়ী-যুগলের পরস্পর বিবাদ হইয়া থাকে তাহাকেই বিদ্বেষণ বলে। যে
কর্ম করিয়া কোন লোককে দূরীভূত করা হয়, তাহাকে উচ্চাটন বলে। যে কর্মে
কাহারও প্রাণনাশ করা হয় তাহা মারণ নামে কথিত। যে সাধকগণ এই সমুদয়
षट्कर्म के लक्षण |
रोगकृत्या ग्रहादीनांग शिरसि शांतिरीरित:।
वश्य जनानांग सर्बेबेशंग देदेत्व मुदिरितग
वृत्ति: सार्बेसंग स्तम्भनांग समुदाहृतम्।
स्निग्धानांग द्वेषां मिधो विद्वेषणंग मातम्
उच्चतानांग स्वदेसदेभ्रोंशनंग परिकीर्तितम्।
प्राणिनांग प्राणहरणांग मरनांग समुदाहरिताम्
स्वदेवता-दिक्कलदीन ज्ञात्वा कर्म्माणि साधयेत्।
स्निग्धानांग अध्यादमित्रभावापन्नम्।
कर्म जिसके द्वारा सभी रोग और ग्रह दोष दूर हो जाते हैं
शांति कार्य वशीकरण वह क्रिया है जिसके द्वारा जीव समर्पण करते हैं
कहते हैं स्तम्भन वह क्रिया है जिसमें प्राणियों की वृत्तियों का निषेध किया जाता है। वह क्रिया
प्रेमी-जोड़ों में आपस में झगड़े होते हैं और इसे नफरत कहा जाता है। वह
जो व्यक्ति कर्म करके नष्ट हो जाता है उसे उच्चाटन कहते हैं। उस क्रिया में
किसी की जान ले लेना हत्या कहलाती है. ये सभी संत
व्यवहार में वे इन सभी देवताओं की विशेष रीति से प्रतिज्ञा करेंगे
जानें और कार्य करें.
কার্যে…